नई दिल्ली, 16 अक्टूबर। हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम युग में, 50 से 70 के दशक के बीच कई प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों ने अपनी छाप छोड़ी, लेकिन एक ऐसी अभिनेत्री भी थीं, जिन्हें राज कपूर पसंद नहीं करते थे।
हम बात कर रहे हैं सुचित्रा सेन की, जिन्होंने 50 के दशक में अपनी खूबसूरती से दर्शकों का दिल जीता। भले ही वह अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं।
सुचित्रा सेन, जिनका असली नाम रोमा दास गुप्ता था, एक साधारण बंगाली परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उनके पिता एक शिक्षक थे और मां घर संभालती थीं, लेकिन सुचित्रा को बचपन से ही सिनेमा का शौक था।
15 साल की उम्र में उनकी शादी उद्योगपति आदिनाथ सेन के बेटे दीबानाथ सेन से हुई, जिन्होंने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने में मदद की। सुचित्रा ने अपने करियर की शुरुआत बंगाली फिल्मों से की और 1952 में 'शेष कोथाए' नामक फिल्म में काम किया, हालांकि यह फिल्म कभी रिलीज नहीं हुई। इसके बाद उन्हें 'सात नंबर कैदी' में देखा गया, जिसने उनके करियर को नई दिशा दी।
हिंदी सिनेमा में सुचित्रा ने 'देवदास' से कदम रखा, जो एक बड़ी हिट साबित हुई। उन्होंने हिंदी और बंगाली दोनों सिनेमा में लगातार काम किया, लेकिन उनकी बढ़ती व्यस्तता के कारण उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया। उनके पति शराब के आदी हो गए और विदेश चले गए।
पति के जाने के बाद, सुचित्रा की जिंदगी में बदलाव आया, लेकिन उन्हें अपनी बेटी के लिए काम करना जरूरी था। उन्होंने फिल्मों में लगातार काम किया और एक समय ऐसा आया जब वह बड़े सितारों से भी ज्यादा फीस लेने लगीं।
सुचित्रा के बारे में कहा जाता है कि वह फिल्म चयन में बहुत सतर्क थीं, जिसके कारण उन्होंने कई बड़ी फिल्में ठुकरा दीं।
एक दिलचस्प किस्सा यह है कि राज कपूर को लेकर उनकी नापसंदगी थी, क्योंकि उन्हें उनके गुलदस्ते देने का तरीका पसंद नहीं था। इसी वजह से उन्होंने कभी उनके साथ काम नहीं किया।
सुचित्रा का अंतिम समय काफी कठिनाइयों से भरा रहा। एक फिल्म 'प्रनोय पाशा' के असफल होने के बाद, उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली और 35 साल तक खुद को एक कमरे में कैद रखा। जब भी उन्हें बाहर जाना होता था, वह अपना चेहरा ढक लेती थीं। उनके निधन के समय भी कोई उनके चेहरे को नहीं देख सका।
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